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Friday, September 20, 2024
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” मैं तैनू फेर मिलांगी ” साहित्यकार अमृता प्रीतम के जन्मदिवस पर विशेष

चंडीगढ़ ( बातों बातों में/हरियाणा डेस्क) वीमेन टीवी इंडिया नेटवर्क के नारी कलम मंच द्वारा आज पंजाबी साहित्यकार अमृता प्रीतम के जन्मदिवस पर विशेष साहित्यिक संगोष्टि” मैं तैनू फेर मिलांगी ” का ऑनलाइन आयोजन किया गया जिस में वरिष्ठ शायरा गुरदीप गुल ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढाई कार्यक्रम का संचालन मीनाक्षी चौधरी एवम डॉ मंजू मिढ़ा ने किया । सदस्य महिलाओं ने अमृता प्रीतम को याद करते हुए उनकी कविताएं पढ़ी । मीनाक्षी चौधरी ने अमृता प्रीतम के जीवन और साहित्यिक रचनाओं पर प्रकाश डाला ,एक वाकये को याद करते हुए बताया कि एक बार अमृता ने डॉ खुशवंत सिंह से कहा कि वे अपनी जीवनी लिखना चाहती हैं तब खुशवंत सिंह ने तंज करते हुए कहा था कि इतना सब तो लिख चुकी हो अब क्या लिखोगी जो बचा है वह तो रसीदी टिकट के पीछे लिखा जा सकता है । अमृता ने अपनी जीवनी लिखी जो लगभग 144 पृष्ठ की हुई और उसका नाम उन्होंने रसीदी टिकट रखा । सुनीता धारीवाल ने अमृता के साहस की चर्चा की न केवल उन्होंने अपने स्वतन्त्र जीवन को जिया बल्कि समाज की परवाह न करते हुए उसे अक्षरों में उतारा भी कि वह पढा भी जॉए धारिवाल ने अमृता प्रीतम की रचना” नि मैं तिड़के घड़े दा पाणी कल तक नही रहना ” पढ़ी ।डॉ मंजू मिढ़ा ने बताया कि अमृता प्रीतम की कविता हर स्त्री की कविता है उनकी रचनाएं हर वर्ग की महिला को जोड़ती है उनकी रचनाओं को हर कोई अपने ढंग से परिभषित करता है वह रचनाएं अब हर किसी के अपने भाव अभिव्यक्ति जैसी हैं मंजू मिढ़ा ने “मैं जदों तेरी सेज ते पैर रखिया सी मैं इक नही सी ..दो सी ..” कविता पढ़ कर सुनाई । आज की गोष्ठी में डॉ वसुधा ने चानन दी फुलकारी तोपा कौन भरे अम्बर दा इक आला सूरज बाल देया ।
सतबीर कौर ने सुन्ने सुन्ने राहां विच कोई कोई पैड ए दिल ही उदास है ते बाकी सब खैर ए।. तेजिंदर कौर ने मैं तैनू फेर मिलांगी कविता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ कर सुनाया । सारिका धूपड़ ने “.नींद ने जैसे अपने हाथों में सपने का जलता कोयला पकड़ लिया नया साल कुझ ऐसे आया.” कविता पढ़ कर सुनाई। डॉ रुचि पन्त ने “ए मेरे दोस्त मेरे अजनबी वह कहता था वह सुनती थी’ कविता सुनाई ।
अस्तिन्दर कौर ने “आ की तैनू नजर भर के आ देख लां -मौत है मंसूर दी कितनी कु मुश्किल देख लां”कविता तरन्नुम में सुनाई ।और श्रोताओं की वाहवाही बटोरी । शशि कालिया ने 1947 के बंटवारे के दर्द में भरी कविता “मैं आखां वारिस शाह नु किते कबरां विचों बोल अज्ज किताबे इश्क दा कोई अगला वरका खोल ,कल रोइ सी धी पंजाब दी वे तू लिख लिख मारे वैण अज्ज लखां धियाँ रोदियाँ ते वारिस शाह नु कहण ” कविता को बड़े भाव पूर्ण ढंग से पढ़ा । सुनीता गिरहोत्रा ने भी अमृता प्रीतम की वसीयत नामक कविता पढ़ी ।
कुलवंत नारंग ने “वे साईं तेरे चरखे ने अज्ज कत्त लिया कत्तन वाली नु -” रचना तरन्नुम में सुनाई ।
कार्यक्रम के अंत मे गुरदीप गुल ने अमृता प्रीतम को संबोधित करती अपनी नज्म पढ़ी और अमृता के जीवन यात्रा पर प्रकाश डाला ।”रच गई इस विच इक बूंद तेरे इश्क़ दी ..इस लयी मैं जिंदगी दी सारी कुड़तन पी लई उन्होंने अमृता प्रीतम की नज्म “चैत्र ने पासा मोड़ेया रंगा दे मेले वास्ते फुल्लां ने रेशम जोड़या पर तू न आया सुनाई और दर्शकों को मंत्र मुग्ध किया ।

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