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ऊर्जा पर्यावरण और अघ्यात्म

लेखक दीपा रावत रामनगर

हमारे चारों ओर का वातावरण पर्यावरण कहलाता है. इसमें धरती – आकाश, नदी -पर्वत ,वन- उपवन ,जल- वायु तथा जीव जंतु सभी आते हैं। मनुष्य इस ब्रह्मांड की तुच्छ इकाई है ।जो पूर्णतः अन्य तत्वों पर निर्भर है । उसकी लाचारी का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है, कि उसकी एक सांस भी वायु के बिना नहीं चलती, पर आज मनुष्य इनकी उपादेयता नहीं समझता । दुरुपयोग भी करता हैं और प्रदूषित भी  करता है ।

 हमारे जीवन ऋषि – मुनि केवल तपस्वी नहीं, वरन विज्ञानी भी थे। तभी पंचमहाभूतों को देवता माना और उनसे आत्मिक  रिश्ता जोड़ा धरती को मां और आकाश को पिता कहकर पुकारा.जब  हम किसी को रिश्ते में बांध लेते हैं ,तो उनका सम्मान करते हैं, प्रदूषित नहीं जब ये तत्व शुद्ध रहेगें, पर्यावरण शुद्ध रहेगा, तब मानव शरीर भी  स्वस्थ रहेगा ।वैदिक साहित्य में त्रग्वेद के घौ , पृथ्वी ,अग्नि आदि सूक्त इसके प्रणाम है। जिनमें पृथ्वी, जल ,वायु आदि सभी तत्वों में प्राणी जगत के योगश्रेम की प्रार्थना की गई है । विविध जीव-जंतुओं को देवों का वाहन कहकर उनका संरक्षण सुनिश्चित किया गया  है।

वृक्ष  पर्यावरण के आधार  है

यही प्राणवायु प्रदाता और दूषित वायु  के अवशोषक है । इस प्रकार वृक्ष गरलपायी  है, और हमारे ऋषिगण यह जानते  थे ।अतः इन पर देवताओं का वास कहकर उनकी पूजा करते थे । 

 पीपल पर बह्रादेव और नीम  देवी का वास बताया । गीता में श्रीकृष्ण ने खुद को वृक्षों में पीपल कहा ,आज विज्ञान ने भी मान लिया है कि पीपल सबसे अघिक प्राणवायु  उत्सर्जक है, तथा नीम में सबसे अघिक  रोग निवारक तत्व मौजूद है । ग्रंथों में वृक्षों को जीवघारी माना गया है ।उनमें संजीवों के सभी लक्ष्ण मौजूद है । अतः उन्हें काटने का कोई प्रश्न  ही नहीं था ।आज पुनःपर्यावरण को अघ्यात्म से जोडने की जरूरत है ।तभी  ग्लोबल वार्मिग के खतरे से बचा जा सकेगा। इसके अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं ।

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