हिसार ( बातों बातों में / हरियाणा डेस्क ) देश की रक्षा करने वाले ,देश के लिए मर मिटने वाले जवान ,किसान पुत्र हैं, देश की 130 करोड़ जनता की सुरक्षा में लगे पुलिस के जवान किसानों की ही संतान हैं ,दुर्भाग्य से उन्हें ऐसे लोगों की भी सुरक्षा करनी पड़ती है जो देश की सत्ता में रहकर देश के खजाने को लूटते हैं, जो रिश्वतखोर हैं- कमीशन खोर हैं -मिलावट खोर हैं -जो बिना पसीना बहाए एक के 100 बनाते हैं, जो परजीवी हैं अपने भोजन से अपना खून नहीं बना सकते ,दूसरों के बने बनाए खून को पीकर जिंदा रहते हैं, जिनका देश की पूंजी पर- व्यापार पर -व्यवसाय पर- देश के धन पर कब्जा है जो अपने एस आराम, रहन सहन ,मनोरंजन ,खान पीन के लिए मैनेजर रखते हैं जिनकी पिछली पीडीयो में आज तक कोई फौज में नहीं रहा है, उनकी सुरक्षा हमारे जवान करते हैं, जो किसान की संतान है , न्याय पक्ष के अध्यक्ष रणदीप लोहचब ने आज जारी अपने बयान में कहा कि देश की शान बढ़ाने वाले, ओलंपिक में मेडल जीतने वाले और कोई नहीं किसानों की संतान हैं ,सत्ता के शिखर पर बैठे ,किसान के दर्द को न समझने वाले न जानने वाले, किसानों का अपमान न करें ,उनकी अवहेलना न करें ,उनका सम्मान करें ! किसान की समृद्धि -खुशहाली में ही देश की समृद्धि है ! एक किसान आयोग के अध्यक्ष स्वामीनाथन ने देश की सरकार को बताया कि किसान की उपज का भाव उसके खर्च मैं ही समा जाता है ,उसको कुछ नहीं बचता ,इसलिए किसान के खेत का ठेका- किराया उसकी मेहनत -मजदूरी को खाद बीज दवाइयों के खर्च के साथ जोड़कर, उसकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए! जो सरकार बड़े बड़े पूंजीपतियों के हजारों करोड रुपए के कर्जे माफ करने में बिल्कुल संकोच नहीं करती, जो सरकार देश की नौकरशाही के वेतन वृद्धि के लिए बैठाए गए आयोग की सिफारिशों को मानकर लागू करने में देर नहीं लगाती, वह सरकार एक अकेले किसान आयोग की रिपोर्ट को मानने से इंकार क्यों करती है? यह यक्ष प्रश्न है ! देश के प्रधानमंत्री को देश की जनता तथा देश के किसानों को इसका उत्तर देना ही होगा ! जो बात देश का किसान चाहता ही नहीं, कभी उसने ऐसे कृषि कानूनों की मांग ही नहीं की, जिन्हें वह रद्द करवाने के लिए 8 महीने से घर परिवार बच्चों को छोड़कर दिल्ली में बैठा है, केवल अपनी जिद पूरी करने के लिए उनकी बात नहीं मानी जा रही !आज जब किसान की संतानों ने देश की शान बढ़ाई है, उनकी सरकार अवहेलना कर रही है, यह समय आत्मचिंतन का है- शर्म करने का है !