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हिन्दू संस्कृति परम्परा : नमस्ते

नमस्ते या नमस्कार प्रमुख रूप से हिन्दु संस्कृति में एक दूसरे से मिलने पर अभिवादन और विनम्रता प्रदर्शित करने के लिए उपयोग होने वाला शब्द है। इस भाव का अर्थ  है कि सभी इंसानों के हृदय में एक दैवीय चेतना और प्रकाश है जो अनाहत चक्र (हृदय चक्र) में स्थित है। नमस्ते के अतिरिक्त नमस्कार और प्रणाम शब्द का प्रचलन भी भारतीय संस्कृति में आता हैं। नमस्ते – नमन व ते शब्द से मिलकर बना है यानी मैं तुम्हारा सत्कार करता हूं। नमस्कार – दो शब्दों नमन व कार से मिलकर बना है यानी सत्कार या आदर करने वाला। प्रणाम – प्र व नम शब्द से मिलकर बना है यानी अच्छे भाव से आपको नमन करता हूं।

हिन्दू संस्कृति में आदर प्रकट करने के भाव :

  • प्रत्युथान : किसी के स्वागत में उठ कर खड़े होना
  • नमस्कार : हाथ जोड़ कर सत्कार करना
  • उपसंग्रहण : बड़े, बुजुर्ग, शिक्षक के पाँव छूना
  • साष्टांग : पाँव, घुटने, पेट, सर और हाथ के बल जमीन पर पुरे लेट कर सम्मान करना
  • प्रत्याभिवादन : अभिनन्दन का अभिनन्दन से जवाब देना

संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से नमस्ते शब्द की उत्पति इस प्रकार है- नमस्ते नमः+ते। अर्थात् तुम्हारे लिए प्रणाम। संस्कृत में प्रणाम या आदर के लिए नमः अव्यय प्रयुक्त होता है, जैसे- “सूर्याय नमः” (सूर्य के लिए प्रणाम है)।

नमस्ते कैसे करे :

  • पहले अपने मन को एक गहरी सांस के साथ शांत करें।
  • सांस छोड़ते हुए हथेलियों को चेस्ट के सामने लाएं।
  • हथेलियों को थोड़ा दबाएं। आपकी उंगलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए और अंगूठे को छाती से स्पर्श करना चाहिए।
  • कमर से थोड़ा झुकें और उसी समय गर्दन को थोड़ा झुकाएँ।
  • और फिर नमस्ते को ना-मा-स्टे के रूप में उच्चारण करें।
  • सिर झुकाकर और हाथों को हृदय के पास लाकर भी नमस्ते किया जा सकता है। दूसरी विधि गहरे आदर का सूचक है।

नमस्ते का मनोवैज्ञानिक प्रभाव : हाथ जोड़ कर आप जोर से बोल नहीं सकते, अधिक क्रोध नहीं कर सकते और भाग नहीं सकते। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हमारे शरीर और मन पर मनोवैज्ञानिक दबाव रहता है। नमस्कार करते वक्त हथेलियों को आपस में दबाने से या जोड़े रखने से हृदय चक्र या आज्ञा चक्र में सक्रियता आती है। जिससे हमारी जागृति बढ़ती है। जिससे मन शांत रहता है और चित्त में प्रसन्नता आती है। इसके अलावा हृदय में पुष्टता आती है और निर्भीकता बढ़ती है।

वैज्ञानिक तर्क :  हाथ जोड़कर अभि‍वादन करने के पीछे वैज्ञानिक तर्क है। जब सभी उंगलियों के शीर्ष एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तो उन पर दबाव पड़ता है। इस तरह से यह दबाव एक्यूप्रेशर का काम करता है। एक्यूप्रेशर पद्धति के अनुसार यह दबाव आंखों, कानों और दिमाग के लिए प्रभावकारी होता है। इस तरह से अभि‍वादन कर हम व्यक्त‍ि को लंबे समय तक याद रख सकते हैं।

नमस्कार मुद्रा को योग के साथ भी जोड़ा गया है: सूर्य नमस्कार सभी योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है।

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