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Thursday, September 19, 2024
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कुर्ग घुमने चले, यही तो है भारत का स्कॉटलैंड

कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की लाजवाब सांस्कृतिक विरासत और खूबसूरत पर्यटन स्थल जिनको देखकर विदेशी सैलानी भी खिंचे चले आते है। भारत के कोने कोने में फैला पर प्राकृतिक सौंदर्य घुमक्कड़ लोगो की आत्मा को तृप्ति कर देता है। घुमक्कड़ की दुनिया मे हम आपको दक्षिण भारत में  कर्नाटक राज्य की एक बेहद ही खूबसूरत जगह कुर्ग की सैर पर लेकर चलते है। कुर्ग की खूबसूरती को शब्दों में पिरोया नही जा सकता।  प्राकृतिक खूबसूरती के कारण इसे भारत का स्कॉटलैंड भी कहा जाता है। एक तरफ जहा कुर्ग प्राकृतिक सौन्दर्य का खजाना है,वही पौराणिक ओर ऐतिहासिक स्मृतियों को समेटे हुए है। कूर्ग या कोडागू जिसे भारत का कॉफी कटोरा भी कहा जाता है। कर्नाटक राज्य का छोटा जिला मगर कॉफी का सबसे बड़ा उत्पादक है। 

कैसे पहुचे कुर्ग :कुर्ग ट्रेन या हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ नहीं है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि कूर्ग केवल जिले का नाम है और कूर्ग के नाम से कोई भी शहर नहीं है। कुर्ग जिले का मुख्यालय को मेडिकेरी के नाम से जाना जाता है। कूर्ग का सबसे नजदीकी रेलवे स्‍टेशन मैसूर है,जो कूर्ग से 118  किमी.की दूरी पर स्थित है। यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट, मंगलौर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। जहां से घरेलू और अंतरराष्‍ट्रीय, दोनो प्रकार की उड़ाने भरी जाती है। कुर्ग की दिल्ली से दुरी 2342 ,मुबई से 1127,कलकता से 2152,लखनऊ से 2162 किलोमीटर है।

भारत का स्कॉटलैंड कुर्ग: कुर्ग या कोडागु कर्नाटक के लोकप्रिय पर्यटन स्‍थलों में से एक है। कूर्ग कर्नाटक के दक्षिण पश्चिम भाग में पश्चिमी घाट के पास एक पहाड़ पर स्थित जिला है। जो समुद्र स्‍तर से लगभग 900 मीटर से 1715 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कूर्ग को भारत का स्‍कॉटलैंड भी कहा जाता है और इसकी खूबसूरती के कारण इसे कर्नाटक का कश्‍मीर भी कहा जाता है। यह स्‍थान यहां पाई जाने वाली हरियाली के कारण के प्रसिद्ध है। यहां की सुंदर घाटियां, रहस्‍यमयी पहाडि़यां, बड़े – बड़े कॉफी के बागान, चाय के बागान, संतरे के पेड़, बुलंद चोटियां और तेजी से बहने वाली नदियां, पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह दक्षिण भारत के लोगों का प्रसिद्ध वीकेंड गेटवे है, दक्षिण कन्‍नड़ के लोग यहां विशेष रूप से वीकेंड मनाने आते है। कूर्ग एक पुराने संसार की याद ताजा कर देता है, यहां के स्‍थानों में प्राचीन काल अनुभूति झलकती है। पर्यटक यहां आकर पूर्वी और पश्चिमी ढलानों के सौंदर्य का लाभ उठा सकते है और यहां के दिल थाम लेने वाले दृश्‍यों को निहार सकते है।

कूर्ग के आसपास – पर्यटकों के लिए स्‍वर्ग: कूर्ग में पर्यटकों के लिए काफी खास और दर्शनीय पर्यटन स्‍थल है।यहां आकर पर्यटक पुराने मंदिरों, ईको पार्क, झरनों और सेंचुरी की खूबसूरती में रम जाते है।अगर आप कूर्ग की सैर पर आएं तो अब्‍बे फॉल्‍स, ईरपु फॉल्‍स,मदीकेरी किला,राजा सीट, नालखंद पैलेस और राजा की गुंबद की सैर करना कतई न भूले। कूर्ग में कई धार्मिक स्‍थल भी है जिनमें भागमंडला, तिब्‍बती गोल्‍डन मंदिर, ओमकारेश्‍वर मंदिर और तालाकावेरी प्रमुख है। यहां के कई स्‍थलों में प्रकृति की असीम सुंदरता भी देखने को मिलती है जैसे – चिलावारा फॉल्‍स, हरंगी बांध, कावेरी निसारगदामा, दुबारे एलीफेंट कैम्‍प, होनामाना केरे और मंडलपट्टी आदि। वन्‍यजीवन में रूचि रखने वाले पर्यटकों को यहां की सेंचुरी में घूमकर बहुत मजा आएगा। यहां आकर पर्यटक साहसिक खेलों का भी लुत्‍फ उठा सकते है ट्रैकिंग, गोल्‍फ, एंगलिंग और रिवर राफटिंग आदि यहां आने वाले पर्यटकों को बेहद पसंद आता है। कूर्ग के अधिकाश: ट्रैकिंग ट्रेल्‍स, पश्चिमी घाट की ब्रह्मागिरि पहाडि़यों पर स्थित है। यहां के अन्‍य ट्रैकिंग गंतव्‍य स्‍थल पुष्‍पागिरि हिल्‍स, कोटेबेट्टा, इग्‍गुथाप्‍पा, निशानी मोट्टे और ताडिनाडामोल आदि प्रमुख है। अपर बारापोल नदी, ब्रह्मागिरि पहाडि़यों में बहती है जो कूर्ग के दक्षिण में स्थित है और यह स्‍थान वालानूर की तरह ही पानी में खेली जाने वाली गतिविधियों के लिए जाना जाता है जो कावेरी नदी के बैकवॉटर पर स्थित है। यह स्‍थान जल प्रेमियों के लिए विशेष है।

मनमोहक इरप्पु झरना: मडिकेरी से करीब 100 किमी. दूर इरप्पु तीर्थ स्थल के रूप में पहचान जाता है जिसका संबंध श्री राम से बताया जाता है। रामतीर्थ नदी के किनारे पर ही भगवान शिव का मंदिर है। शिवरात्रि के मौके पर हजारों तीर्थ यात्री इस नदी में श्रद्धा की डुबकी लगाते हैं।

हरंगी बांध भी देखे: मडिकेरी से लगभग 35 किमी. दूर हरंगी अपने ट्री हाउसों के लिए जाना जाता है। कावेरी नदी पर बना यह बांध 2775 फीट लंबा और 174 फीट ऊंचा है। नल्कनाद महल- कोडगू की सबसे ऊंची पहाड़ी के तल पर बना नल्कनाद महल अतीत की याद सँजोये है। मडिकेरी से 45 किमी. दूर यह महल 1792 में डोडा वीरराज द्वारा बनवाया गया था। दो खंड में यह महल अपनी आकर्षक चित्राकारी और वास्तुकारी से सबको मोहित कर देता है।

कूर्ग में मौसम :कूर्ग की यात्रा के लिए सबसे अच्‍छा मौसम नबवंर से अप्रैल के दौरान के होता है। वैसे साल के सभी महीनों में कूर्ग का मौसम घूमने के लिए अनुकूल रहता है।

कूर्ग लोक संस्‍कृति :कूर्ग को संस्‍कृति और परंपरा की दृष्टि से सबसे सुंदर हिल स्‍टेशन माना जाता है। कूर्ग में मनाएं जाने वाले त्‍यौहारों में से हुट्टारी, मेरकारा दसारा, केल पोदू ( केल मुहुरथ या आर्म का त्‍यौहार ) और कावेरी संक्रमण या तुला संक्रमण आदि प्रमुख है। यहां की स्‍थानीय पाक कला में नॉन वेज डिश सबसे ज्‍यादा बनाई जाती हैं। इसके अलावा, यहां का साउथ इंडियन खाना भी बेहद लज़ीज बनता है। कूर्ग की आबादी में कई जनजाति समुदाय शामिल है, इनमें से कुछ प्रजातियों के नाम कोदावा, तुलु, गोवडा, कुदीयास और बुंटास आदि है। यहां की अधिकांश: जनता कोदावा जनजाति से ताल्‍लुक रखती है और यह जनजाति अपनी बहादुरी और आतिथ्‍य के लिए जानी जाती है।यहां की भाषा कूर्गी है। स्थानीय लोग इसे कोडवक्तया कोडवा कहते हैं। 

कुर्ग का बाजार :मेडिकेरी यानी कुर्ग का मुख्यालय यहा के बाजार में आप जमकर खरीदारी कर सकते है। आप यहा कॉफी, काली मिर्च, इलायची और शहद खरीद सकते हैं। ये सभी चीजें अच्छी किस्म की हैं और ठीक दाम पर यहा मिल जाती हैं। मौसम हो तो कुर्ग के संतरे जरूर खाएं। यूं तो साल भर कुर्ग का मौसम सुहावना रहता है। लेकिन मानसून के दौरान यहां आने से बचें । कूर्ग सारी दुनिया में यहां की कॉफी पैदावार के लिए जाना जाता है, यह भारत में कॉफी पैदा करने का प्रमुख केंद्र है। कूर्ग में अंग्रेजों ने कॉफी की पैदावार की शुरूआत की थी। अरेबिका और रोबस्‍टा, यहां की मुख्‍य कॉफी की प्रजातियां है जिनकी पैदावार कूर्ग में होती है।

कूर्ग का इतिहास :कूर्ग के नाम यानि कोडगू की उत्‍पत्ति को लेकर कई कहानियां कहीं जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि कोडगू शब्‍द की उत्‍पत्ति क्रोधादेसा से हुई है, जिसका अर्थ होता है कदावा जनजाति की भूमि। कुछ अन्‍य लोगों का मानना है कि कोडगू शब्‍द, दो शब्‍द से मिलकर बना है कोड यानि देना और अव्‍वा यानि माता, जिससे इस स्‍थान को माता कावेरी को समर्पित माना जाता है। बाद में कोडगू को कूर्ग के नाम से जाना गया। कूर्ग की ऐतिहासिक आंकडों पर अगर नजर डाली जाएं तो पता चलता है कि यह लगभग 8 वीं सदी में बसा था। कूर्ग में गंगा वंश का शासन सबसे पहले था। बाद में कुर्ग कई शासकों और वंशजों की राजधानी बना जैसे – पांडवों, चोल, कदम्‍ब, चालुक्‍य और चंगलवास आदि। होयसाल ने कूर्ग में 1174 ई. पू. अपना आधिपत्‍य जमा लिया था। बाद में 14 वीं शताब्‍दी में यहां विजयनगर शासकों का साम्राज्‍य हो गया था। 

1600 ईस्वी के बाद लिंगायत राजाओं ने कुर्ग में राज किया और मडिकेरी को राजधानी बनाया। मडिकेरी में उन्होंने मिट्टी का किला भी बनवाया। 1785 में टीपू सुल्तान की सेना ने इस साम्राज्य पर कब्जा करके यहां अपना अधिकार जमा लिया। चार वर्ष बाद कुर्ग ने अंग्रेजों की मदद से आजादी हासिल की और राजा वीर राजेन्द्र ने पुर्ननिर्माण का कार्य किया। 1834 ई. में अंग्रेजों ने इस स्थान पर अपना अधिकार कर लिया और इसके पश्‍चात कई शासकों का शासन कूर्ग में हुआ। अंत में अंग्रेजो ने भी कूर्ग पर आधिपत्‍य जमा लिया था। देश की आजादी से पहले  1947 तक कूर्ग पर अंग्रेजों ने अपना शासन जमा कर रखा यहां के अंतिम शासक पर मुकदमा चलाकर उसे जेल में डाल दिया। कुर्ग अंग्रेजों का दिया नाम है जिसे बदलकर कोडगु कर दिया गया है। और 1950 तक यह एक स्‍वंतत्र राज्‍य था। 1956 में इसे राज्‍यों के पुर्नगठन के दौरान कर्नाटक राज्‍य का हिस्‍सा बना दिया गया। इस छोटे से जिले में तीन तालुका आते है – मेडिकेरी, सोमवारापेटे और वीराजापेटे। मेडिकेरी को कूर्ग का मुख्‍यालय माना जाता है।

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